बिलासपुर। न्यायधानी बिलासपुर इन दिनों मच्छरों के विकराल कहर से त्रस्त है। शहर के घर, दफ्तर और अस्पतालों तक में मच्छरों का आतंक दिखाई दे रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि नगर निगम की लाखों की फॉगिंग मशीनें महीनों से जंग खा रही हैं और महत्वपूर्ण एंटी-लार्वा अभियान लगभग ठप है। नतीजतन, 70 वार्डों वाला यह शहर अब मच्छरों का गढ़ बन चुका है, जिससे नागरिकों का स्वास्थ्य और जेब दोनों खतरे में हैं।
वीआईपी इलाकों तक सिमटी फॉगिंग, बाकी शहर बेहाल
हर मोहल्ले की कहानी एक जैसी है—दिन में सन्नाटा और रात में मच्छरों की भनभनाहट। निगम द्वारा फॉगिंग की कार्रवाई बेहद अनियमित है और अक्सर यह केवल वीआईपी इलाकों तक ही सीमित रहती है, जबकि बाकी शहर मच्छरों की मार झेलने को मजबूर है।
जनता पर सालाना 2 करोड़ का अतिरिक्त बोझ
मच्छरों से निजात पाने के लिए शहरवासी अपने स्तर पर उपाय करने को मजबूर हैं। अनुमान है कि लिक्विड, क्वॉइल, टिकिया और स्प्रे जैसे मच्छर भगाने वाले उत्पादों पर बिलासपुर के लोग सालाना करीब डेढ़ से दो करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं। औसतन एक परिवार का दैनिक खर्च 6 से 8 रुपये तक पहुंच गया है।
मद निगम का सालाना बजट (अनुमानित) जनता का सालाना खर्च (अनुमानित)
मच्छर नियंत्रण/एंटी-लार्वा/फॉगिंग ~ ₹2 करोड़
बढ़ते स्वास्थ्य संकट की भयावह तस्वीर
निगम के एंटी-लार्वा और फॉगिंग पर सालाना लगभग दो करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद, जमीनी हालात उलट हैं। मच्छरों की बढ़ती संख्या से गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं:
2024: मच्छरजनित रोगों के 245 मामले दर्ज।
2025 (जनवरी–सितंबर): मामलों की संख्या बढ़कर 329 हुई।
कुल 329 मामलों का ब्रेकअप (2025):
डेंगू: 21
पीएफ (Plasmodium falciparum): 145
पीवी (Plasmodium vivax): 100
अन्य संक्रमण: 63
निगम की लापरवाही का आलम
लाखों की फॉगिंग मशीनें कबाड़ हो चुकी हैं, और एंटी-लार्वा अभियान के टेंडर तीन बार निरस्त किए जा चुके हैं। इसके बावजूद, नगर निगम की आंतरिक रिपोर्टों में मच्छर नियंत्रण को सब कुछ "नियंत्रण में" दर्शाया जा रहा है। निगम के इस रवैये से शहर का आम नागरिक बढ़ते स्वास्थ्य खतरे और अनावश्यक खर्च के बीचपरेशान है।







